विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक कौन था ?

विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक कौन था ?

विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक कृष्णदेव राय था।

  • कृष्णदेव राय ने विजयनगर साम्राज्य (Vijaynagar Samrajya) को समृद्ध और गौरव के चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। कृष्णदेव राय भारत के महान शासकों में से था।
  • कृष्णदेव राय का शासनकाल 1509 ई. से 1529 ई. तक माना जाता है।
  • कृष्णदेव राय (krishan dev ray) बड़ी विषम परिस्थितियों में सिंहासनारूढ़ हुआ। विजयनगर के अनेक सामन्त शासक विद्रोही हो गये थे। उड़ीसा के गजपति नरेश ने साम्राज्य के पूर्वी और उदयगिरि के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। उत्तर एवं पश्चिम में क्रमशः बीजापुर और पुर्तंगाली भी विजयनगर पर अधिकार करने की योजना बना रहे थे।
  • सर्वप्रथम उसने विद्रोही सामन्तों का दमन किया। 1513 ई. में उसने गजपति शासक से उदयगिरि जीता तथा 1520 ई. में उसने या बीजापुर को पराजित करके सम्पूर्ण रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया।
  • कृष्णदेव राय ने बीदर और गुलबर्गा पर आक्रमण करके बहमनी सुल्तान महमूदशाह को कासिम बरीद से मुक्त करके बीदर की राजगद्दी पर आसीन किया। इस उपलब्धि की स्मृति में कृष्णदेव राय ने ’यवनराज स्थापनाचार्य’ का विरुद धारण किया।
  • कृष्णदेव (Krishnadevaraya) राय का पुर्तगालियों से अच्छे सम्बन्ध थे, जिसका मुख्य कारण था – पुर्तगालियों की बीजापुर से शत्रुता तथा घोड़ों की आपूर्ति।
  • 1510 ई. में अलबुकर्क ने फादर लुई को कालीकट के जमोरिन के विरुद्ध युद्ध सम्बन्धी समझौता करने और भटकल में एक कारखाने की स्थापना की अनुमति माँगने के लिए कृष्णदेव राय के दरबार में भेजा।
  • कृष्णदेव राय एक महान सेनानायक एवं विजेता ही नहीं अपितु एक महान प्रशासक भी थे। उसने अपने प्रसिद्ध तेलुगू ग्रन्थ आमुक्तमाल्यद (राजनीति पर ग्रन्थ) में अपने राजनीतिक विचारों और प्रशासकीय नीतियों का विवेचन किया है।
  • उसने संस्कृत भाषा में ’जाम्बवती कल्याणम’ एवं ‘उषापरिणय’ की रचना की थी।
  • वह अपने ग्रन्थ आमुक्तमाल्यद में राजस्व के विनियोजन एवं अर्थव्यवस्था के विकास पर विशेष बल देते हुए लिखा है कि ’’राजा को तालाबों एवं सिंचाई के अन्य साधनों एवं अन्य कल्याणकारी कार्यों के द्वारा प्रजा को सन्तुष्ट रखना चाहिए। राजा को कभी धर्म की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।’’
  • एक महान प्रशासक होने के साथ-साथ वह एक महान विद्वान, विद्या प्रेमी और विद्वानों का उदार संरक्षक भी था, जिसके कारण वह अभिनव भोज के रूप में प्रसिद्ध था।
  • उसका शासनकाल तेलगू साहित्य का क्लासिकी युग माना जाता है। उसके दरबार को तेलुगू के आठ महान विद्वान एवं कवि (जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता है) सुशोभित करते थे। अतः उसे आन्ध भोज एवं तेलुगू भोज भी कहा जाता है।
  • अष्टदिग्गज तेलुगू कवियों में पेड्डाना सर्वप्रथम थे, जो संस्कृत एवं तेलुगू दोनों भाषाओं के ज्ञाता थे। उनकी प्रमुख रचना ’स्वारोचीतसम्भव’ तथा ’मनुचरित’ है, उन्हें कृष्णदेव राय ने विशेष रूप से सम्मानित किया था।
  • कृष्णदेव राय ने अनेक मन्दिरों, मण्डपों, तालाबों आदि का निर्माण करवाया। अपनी राजधानी विजयनगर के निकट नागलापुर नामक नगर की स्थापना की।
  • उसके शासनकाल में पुर्तगाली यात्री डोमिगो पायस ने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की। वह कुछ समय तक कृष्णदेव राय के दरबार में भी रहा।
  • पायस ने कृष्णदेव राय के व्यक्तित्व और उसके शासनकाल का विस्तार से विवेचन करते हुए लिखा है कि ’’वह अत्यधिक विद्वान और सर्वगुण सम्पन्न नरेश हैं, जैसा कि शायद ही कोई अन्य हो सके। वह एक महान शासक एवं एक अत्यन्त न्याय प्रिय व्यक्ति हैं।’’
  • पायस ने विजयनगर राजधानी की अतिशय प्रशंसा की और लिखा कि ’’इसके बाजारों में सम्पूर्ण विश्व की ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो न बिकती हो।’’
  • विजयनगर के आकार का उल्लेख करते हुुए पायस लिखता है कि ’’आकार में वह (विजयनगर) रोम के समान विशाल एवं सुविस्तृत है। इस नगर में असंख्य लोग निवास करते हैं, जिनकी संख्या का मैं भय के कारण उल्लेख नहीं कर रहा हूँ कि कहीं इसे, अतिशयोक्तिपूर्ण न माना जाये।’’
  • कृष्णदेवराय के शासनकाल में एक अन्य पुर्तगाली यात्री डुआर्ट बारबोसा ने भी यात्रा की, जिसने समकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। उसने सतीप्रथा का उल्लेख भी किया है।
  • कृष्णदेव राय ने बंजर एवं जंगली भूमि को कृषि योग्य बनाने की कोशिश की। उसने विवाह कर जैसे अलोकप्रिय करों को समाप्त करके अपनी प्रजा को करों से राहत दी थी।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्णदेव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है।
  • कृष्णदेव राय ने हजारा मन्दिर तथा विठ्ठल स्वामी के मन्दिर का निर्माण कराया। इसके अतिरिक्त उसने ’चिदम्बरम मन्दिर’ का निर्माण भी करवाया था।
  • वह हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों का समान आदर करता था, यद्यपि उसकी अपनी आस्था वैष्णव धर्म में थी।
  • बारबोसा ने उसकी धार्मिक सहिष्णुता की प्रशंसा की है।
  • 1529 ई. में कृष्णदेव राय की मृत्यु हो गयी।

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