Sandhi kise kahate hain?
संधि किसे कहते है?
संधि शब्द का व्युत्पत्ति –
संधि शब्द की व्युत्पत्ति ‘सम्’ उपसर्ग ‘धा’ धातु एवं ‘इ’ प्रत्यय से मिलकर हुई है।
जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – ‘परस्पर मिलना’ अर्थात जब दो या दो से अधिक वर्णो का परस्पर मेल हो और उनमें कोई परिवर्तन हो तो उसे संधि कहा जाता है। परिवर्तन आने पर ही संधि होती है ।
संधि का शाब्दिक अर्थ –
योग अथवा मेल। अर्थात् दो ध्वनियों या दो वर्गों के मेल से होने वाले विकार,परिवर्तन को संधि कहते हैं।
संधि की परिभाषा :
- दो अक्षरों या वर्णों के आपस में मेल से अक्षरों या वर्णों के रूप और उच्चारण में जो परिवर्तन आता है, उसे संधि कहते है।
- दो वर्णों को जोड़ने की प्रक्रिया को संधि कहलाती है। संधि प्रथम शब्द के अन्तिम वर्ण व द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण के मध्य होती है। इसी कारण अक्षरों या वर्णों के रूप और उच्चारण में परिवर्तन आता है।
- दो वणों के आपस में मेल हो जाने से जो विकार उत्पन्न होता है , वह ‘ संधि ‘ कहलाती है ।
- वर्णों के पारस्परिक मेल से नवीन शब्दों का निर्माण होता है,यह प्रक्रिया संधि कहलाती है।
- दो निकटस्थ ध्वनियों के परस्पर मेल से जो विकार/ परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते है।
- जिस बिंदु पर दो अलग -अलग हिस्से जुड़ जाते हैं/ उस बिंदु को संधि कहते है।
- किसी दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर जो शब्द बनता है, उसे संधि कहते है।
संधि का अर्थ होता है मेल या जोड़ । जैसे –
रमा + ईश = रमेश ( आ + ई = ए )
यहाँ रमा शब्द का ‘आ’ और ईश शब्द का ‘ ई ’ दोनो स्वरों के मिलने से ‘ ए ’ स्वर की उत्पति हुई , जिससे ‘रमेश’ शब्द का निर्माण हुआ ।
संधि के भेद
संधि तीन प्रकार की होती है-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि ।
स्वर संधि के पाँच भेद होते है-
- दीर्घ स्वर संधि
- गुण स्वर संधि
- वृद्धि स्वर संधि
- यण स्वर संधि
- अयादि स्वर संधि