आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की कला संस्कृति टॉपिक के अंतर्गत राजस्थान की लोकदेवियाँ(Rajasthan ki Lok Deviyan) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।आप अच्छे से पुरे आर्टिकल को ध्यान से पढ़ें।
राजस्थान की लोकदेवियाँ
राजस्थान की प्रमुख लोकदेवियाँ
अम्बिका माता
- अम्बिका माता का प्रमुख मंदिर जगत (सलूम्बर) में बना है।
- इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में अल्लट द्वारा करवाया गया। यह मन्दिर मातृदेवियों को समर्पित होने के कारण ’शक्तिपीठ’ कहलाता है।
- यह मंदिर महामारू शैली में बना है, इसका शिखर नागर शैली में बना है।
- यहाँ नृत्य करते गणेश जी की प्रतिमा है।
- यह मंदिर ’मेवाड़ का खजुराहो’ कहलाता है।
⬛ मेवाड़ का खजुराहो किसे कहते है?
उत्तर – अम्बिका माता(जगत, उदयपुर) मंदिर को मेवाड़ का खजुराहो कहते है।
शीला देवी
- शीला देवी आमेर के कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी है।
- इनका प्रमुख मंदिर आमेर (जयपुर) में है। इस मंदिर का निर्माण आमेर के राजा मानसिंह प्रथम ने आमेर किले के जलेब चैक में करवाया था।
- आमेर के राजा मानसिंह प्रथम ने पूर्वी बंगाल के शासक केदार से 1604 ई. में यह काले पत्थर की मूर्ति लाकर आमेर के राजभवनों के मध्य प्रतिष्ठापित किया था।
- यह काले पत्थर की मूर्ति अष्टभुजी प्रतिमा है। इस भगवती महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंचदेवों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण है।
- यहाँ मदिरा व जल का चरणामृत दिया जाता है।
- शीलादेवी का मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस मंदिर के चाँदी के किवाड़ है। इस मंदिर में कलात्मक संगमरमर का कार्य सवाई मानसिंह द्वितीय ने करवाया था।
- नवरात्रों के उपलक्ष्यों में यहाँ छष्ठी और अष्टमी के मेले का विशेष आयोजन होता है।
इडाणा माता
- इडाणा माता का मंदिर बम्बोरा (सलूम्बर) में बना है।
- यह माता ’मेवल की महारानी’ के उपनाम से जानी जाती है।
- यह अग्नि स्नान करने वाली देवी है। इस मंदिर पर छत नहीं है खुले चौक में चबूतरे पर स्थित है यहाँ महीने में 2-3 बार स्वतः अग्नि प्रकट होती है माता का शृंगार, चुनरी आदि जलकर स्वाहा हो जाती है।
कालिका माता
- कालिका माता का प्रमुख मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 7 वीं सदी के अंत में हुआ
- यह गुहिल वंश की आराध्य देवी है।
- इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में मानमोरी द्वारा करवाया गया।
- यह सूर्य को समर्पित प्राचीनतम मंदिर था। इसकी प्रतिमा को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था।
- उसके बाद महाराणा सज्जनसिंह ने जीर्णोद्धार करवा कर कालिका माता की मूर्ति स्थापित करवायी।
शीतला माता
- शीतला माता को चेचक की देवी, कोढ़ की देवी, मातृरक्षिका एवं बच्चों की संरक्षिका के उपनामों से जाना जाता है।
- शीतला माता का मंदिर शील की डूँगरी (चाकसू, जयपुर ग्रामीण) में है। इस मंदिर का निर्माण सवाई माधोसिंह प्रथम ने करवाया था। इस मंदिर का पुनःनिर्माण माधोसिंह द्वितीय ने करवाया था।
- यहाँ इनकी खंडित मूर्ति की पूजा होती है।
- शीतला माता की सवारी गधा है।
- इनका पुजारी कुम्हार होता है और इनका प्रतीक चिह्न मिट्टी का दीपक होता है।
- शीतला माता का चैत्र कृष्ण अष्टमी को लक्खी मेला लगता है। चैत्र कृष्ण सप्तमी को घरों में विभन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते है और चैत्र कृष्ण अष्टमी को सुबह माता को ठण्डे पकवानों बास्योड़ा का भोग लगाकर पूजा की जाती है।
- शीतला माता का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है। शीतलाष्टमी के दिन जहाँ इनका मंदिर नहीं होता, वहाँ खेजड़ी को ही शीतला माता मानकर उसकी पूजा की जाती है।
- यह लोकदेवी राजस्थान के सभी भागों में पूजी जाती है।
- शीतला माता बच्चों की चेचक से रक्षा करती है। इसलिए माता को ठण्डा चढ़ाने श्रद्धालु यहाँ आते है।
- चैत्र कृष्ण अष्टमी को चाकसू (जयपुर ग्रामीण) में गधों का मेला लगता है। जिसे ’बैलगाड़ियों का मेला’ भी कहा जाता है।
बिरवड़ी माता
- बिरवड़ी माता का मंदिर आकोला (चित्तौड़गढ़) में बना है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर का ही जीर्णोद्धार कर राणा हम्मीर ने अन्नपूर्णा माता के नाम से इनका नामकरण कर दिया। यहाँ यह अन्नपूर्णा के नाम से जानी जाती है। इन्होंने हम्मीर को चित्तौड़ विजय का आर्शीवाद दिया था।
- यह माता सिसोदिया राजवंश की आराध्य देवी है।
घेवर माता
- घेवर माता का मंदिर राजसमंद झील के किनारे (राजसमंद) में बना है। यह एक सती मंदिर है। मान्यता है कि राजसमंद झील की पाल का पहला पत्थर इन्होंने ही रखा था।
- इस मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था।
- राजसमंद झील के निर्माण के समय महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाई पाल दिन में बनाते और रात में टूट जाती थी। राजपुरोहित के कहने पर एक धर्मपरायण पतिव्रता महिला घेवर बाई से झील की पाल की नींव रखवाई गयी।
- घेवर माता अपने हाथों में होम की अग्नि प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी।
कैला देवी
- यह करौली के यादव राजवंश और मीणाओं की आराध्य देवी है।
- पूर्वी राजस्थान की सबसे लोकप्रिय देवी है।
- इन्हें कृष्ण की बहन और माता अंजनी का अवतार माना जाता है।
- कैला देवी का मंदिर त्रिकूट पर्वत पर करौली में है। यहाँ चै़त्र शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला भरता है।
- केदारगिरी साधु ने 1114 ई. में यहाँ कैला देवी की मूर्ति स्थापित की थी। इस मंदिर का निर्माण 1900 ई. में करौली महाराजा गोपाल सिंह ने करवाया था। इसको वर्तमान स्वरूप राघवदास द्वारा दिया गया है।
- यहाँ माता जी की अष्टभुजी प्रतिमा विद्यमान है। इनके मंदिर पर बच्चों का मुण्डन होता है।
- कैला देवी ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।
- यहाँ कालीसिल नदी में स्नान करना पवित्र माना जाता है।
- कैलादेवी मंदिर के सामने बोहराजी की छतरी है।
- यहीं पर हनुमान जी का मंदिर बना है।
- हनुमान जी अग्रवाल जाति के कुलदेवता है इसलिए उनकी माँ अंजना भी अग्रवाल जाति की आराध्य देवी है।
- कैला देवी की आराधना में लांगूरिया गीत गाया जाता है। लांगूरिया गीत गाते हुये जोगनिया नृत्य किया जाता है।
- राजस्थान की एकमात्र देवी जिनके माँस-मदिरा का भोग नहीं लगता है।
- यहाँ का कनक दंडवत प्रसिद्ध है।
आमजा माता
- आमजा माता का मंदिर रिछेड़ (राजसमंद) में बना है।
- इनके मंदिर में एक भील भोपा व एक ब्राह्मण पुजारी होता है। इनका मेला ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को भरता है।
- यह भीलों की आराध्य देवी है।
महामाया माता – शिशु रक्षक लोक देवी
- महामाया माता का मंदिर मावली (उदयपुर) में है।
- यह ’महामाई’ उपनाम से जानी जाती है।
- यह शिशु रक्षक लोकदेवी कहलाती है।
राजस्थान की लोकदेवियां
आवरी माता
- आवरी माता का प्रमुख मंदिर निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में बना है।
- यहाँ लकवाग्रस्त, लूले व लंगड़े लोगों का ईलाज किया जाता है।
बड़ली माता
- बड़ली माता का प्रमुख मंदिर बेड़च नदी के किनारे आकोला (चित्तौड़गढ़) में बना है।
- इनके मंदिर में बनी दो तिबारियों में से बच्चों को निकालने पर रोग का निदान होता है।
- स्वस्थ रहने पर इनकी ताँती बांधी जाती है।
- मन्नत पूरी होने पर यहाँ लोहे का त्रिशूल चढ़ाने की परम्परा है।
तुलजा भवानी माता
- तुलजा भवानी माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रामपोल के पास बना है।
- यह छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी है।
- बनवीर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। बनवीर ने अपने वजन के बराबर स्वर्ण आभूषण दान किये थे, इस तुलादान के धन से निर्मित होने के कारण यह ’तुलजा’ कहलाई।
बाणमाता
- बाणमाता का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग, केलवाड़ा (राजसमंद) व नागदा (उदयपुर) में है।
- यह सिसोदिया वंश की कुलदेवी है।
- केलवाड़ा वाले मंदिर को महाराणा कुम्भा के समय 1443 ई. सुल्तान खिलजी प्रथम ने मंदिर में लकड़ियाँ भरकर आग लगा कर नष्ट कर दिया था। इस मंदिर का पुनः निर्माण कर गुजरात से नयी मूर्ति मंगवाकर लगवायी गयी।
जोगनिया माता
- जोगनिया माता का मंदिर भीलवाड़ा जिले व चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बना है।
- इस मंदिर से 1 किमी. दूर बंबावदागढ़ का किला है। वहाँ के शासक देवा हाड़ा ने अपने पुत्री का विवाह किया तो अन्नपूर्णा माता को बुलाया, माता जोगण का रूप धारण कर आयी थी।
- मनोकामना पूरी होने पर मंदिर परिसर में मुर्गे छोड़कर जाने की प्रथा है।
त्रिपुरा सुन्दरी
- त्रिपुरा सुन्दरी माता का मंदिर उमराई गाँव, तलवाड़ा (बाँसवाड़ा) में है।
- इन्हें तुरताई माता/त्रिपुरा महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है।
- इनको 18 भुजाओं वाली देवी कहा जाता है।
- यह पांचाल जाति की कुलदेवी है।
- इनकी काले पत्थर की सिंह पर सवार अठारह भुजी प्रतिमा है। मूर्ति की पीठिका पर मध्य में श्रीयंत्र अंकित हैै। यह मंदिर प्राचीन शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। मंदिर के उत्तरी भाग में कनिष्क के समय का एक शिवलिंग स्थापित है।
भदाणा माता
- भदाणा माता का मंदिर भदाणा गाँव (कोटा) में है।
- यह कोटा के हाड़ा चौहानों की आराध्य देवी है।
- यहाँ मूठ पीड़ित व्यक्तियों का ईलाज होता है।
ब्रह्माणी माता
- ब्रह्माणी माता का मंदिर सौरसेन (बारां) में है।
- राजस्थान की एकमात्र देवी जिनकी पीठ का शृंगार व पीठ की ही पूजा होती हैै।
- यहाँ पर गधों का मेला भी भरता है। यहाँ माघ शुक्ल सप्तमी को मेला भरता है।
जमुवाय माता
- जमुवाय माता ढूँढाड़ के कच्छवाहा राजवंश की कुल देवी है।
- इन्हें अन्नपूर्णा माता के नाम से जाना जाता है। यही देवी मंगलाय, फिर हड़वाय, द्वापर में बूढ़वाय, कलयुग में जमुवाय के नाम से जानी जाती थी।
- इनका प्रमुख मंदिर जमवारामगढ़ (जयपुर) में बना है। इस मंदिर का निर्माण दुल्हेराय द्वारा करवाया गया।
- इस मंदिर में जमुवाय माता की मूर्ति गाय व बछड़े के साथ स्थापित है।
नारायणी माता
- नारायणी माता नाई जाति की कुल देवी है।
- इनका मंदिर लूणियावास (जयपुर ग्रामीण) में है। यह मंदिर प्रतिहार शैली में बना है।
- इनके पति गणेश की सर्प काटने से मृत्यु होने पर ये इसी स्थान पर अपने पति के साथ सती हो गयी थी।
- इनका मेला वैशाख शुक्ल एकादशी को भरता है।
- इनके मंदिर में पुजारी मीणा जाति का होता है। मीणा जाति भी इन्हें आराध्य देवी मानती है।
राजस्थान की लोक देवियां
हर्षद माता
- यह माता ’उल्लास की देवी’ कहलाती है।
- हर्षद माता का मंदिर आभानेरी (दौसा) में है। इस मंदिर का निर्माण राजा चाँद ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर प्रतिहारकालीन है।
- इस मंदिर के समीप ही प्रसिद्ध चाँद बावड़ी भी बनी है।
चौथ माता
- यह कंजर जाति की कुलदेवी है।
- इन्हेें ’सुहाग की देवी’ भी कहा जाता है।
- चौथ माता का मंदिर चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) में है। इनका मेला माघ कृष्ण चतुर्थी को लगता है।
जीण माता
- यह सीकर के चौहानों की कुलदेवी एवं शेखावाटी के मीणाओं की कुल देवी है।
- इन्हें ’मधुमक्खियों की देवी’ के नाम से जाना जाता है।
- यह घंघराय चौहान की पुत्री और हर्ष की बहिन थी।
- सभी देवी देवताओं में सबसे लंबा लोकगीत जीण माता का है। जिसे कनफटे जोगी डमरू एवं सारंगी वाद्ययंत्र के साथ करुण रस में गाते है।
- इनका लोकगीत ’चिरजा’ कहलाता है।
- जीण माता का मंदिर रैवासा ग्राम (सीकर) में है। इसका निर्माण पृथ्वीराज प्रथम के शासनकाल में राजा हट्टड़ ने 1064 ई. में करवाया था। इनका मेला चैत्र व आश्विन नवरात्रों में भरता है।
- इनके मंदिर में इनकी आदमकद अष्टभुजी प्रतिमा है, जिसके सामने घी व तेल के दो दीपक अखण्ड रूप से सालों से प्रज्ज्वलित है। दीपक के लिए घी केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाता है। मंदिर में दीपकों की ज्योतियों की व्यवस्था दिल्ली के चौहान शासकों ने शुरू की थी।
- यहाँ ढाई प्याले शराब चढ़ती है तथा बकरे के कान की बलि दी जाती है।
राणी सती माता
- राणी सती माता अग्रवालों की कुलदेवी है।
- 1652 ई. में इनके पति तनधनदास को हिसार (हरियाणा) के नवाब के सैनिकों ने धोखे से मार दिया। तब इन्होंने अपने हाथ में तलवार लेकर सभी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, फिर अपने पति के साथ सती हो गयी। इनके परिवार में कुल 13 महिलाएँ सती हो चुकी है। लोकभाषा में इन्हें ’सती दादी’ के नाम से जाना जाता है।
- इनका मंदिर झुंझुंनूँ में संगमरमर से निर्मित है। यहाँ इनका मेला भाद्रपद अमावस्या को भरता है।
करणी माता
- करणी माता को चारणों की कुल देवी, बीकानेर के राठौड़ वंश की कुलदेवी और चूहों की देवी के उपनामों से जाना जाता है।
- इस देवी को जगत माता का अवतार माना जाता है।
- करणी माता का मंदिर देशनोक (बीकानेर) में है। इनके मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
- इनके मंदिर ’मढ़’ कहा जाता है।
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी थी।
- इनका मुख्य मंदिर देशनोक (बीकानेर) में है, जोे ’चूहों का मंदिर’ कहलाता है। यहाँ चैत्र व आश्विन नवरात्रों में मेला भरता है।
- करणी माता के मंदिर का प्रारम्भ में निर्माण सेठ चांदमल ढड्डा ने करवाया था। इसके बाद महाराजा कर्णसिंह व उसके बाद महाराजा सूरतसिंह ने भी करणी माता के मंदिर को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया।
- इनके मंदिर के किवाड़ चाँदी के बने हैं, यह अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह ने बनवाये थे।
- देशनोक मंदिर में स्थित सफेद चूहे काबा कहलाते है।
- देशनोक मंदिर के मुख्य दरवाजे के पास करणी माता के ग्वाले दशरथ मेघवाल का देवरा है। जिसके नजदीक सावण-भादवा नामक दो बड़ी कड़ाही रखी है।
- करणी माता का पैनोरमा देशनोक में बना है। जिसका लोकार्पण 28 जुलाई, 2018 को हुआ था।
- देशनोक मंदिर में 11 फीट ऊँचा चाँदी का दीपक रखा गया है जो विश्व का सबसे बड़ा चाँदी का दीपक है।
- करणी माता का ओरण 10,000 बीघा में है, यह राजस्थान का सबसे बड़ा ओरण माना जाता है।
कुशाला माता
- यह माता चामुण्डा माता का अवतार मानी जाती है।
- कुशाला माता का मंदिर बदनौर (ब्यावर) में है। इनका मेला भाद्रपद कृष्ण 11 से भाद्रपद अमावस्या तक भरता है।
- महाराणा कुम्भा ने 1457 ई. में बदनौर के युद्ध में महमूद खिलजी प्रथम पर विजय के उपलक्ष्य में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह 32 खंभों का मंदिर है।
दधिमती माता
- यह दाधिच ब्राह्मणों की कुलदेवी है।
- दधिमती माता का मंदिर गोठ-मांगलोद (नागौर) में है। यह मंदिर प्रतिहारकालीन स्थापत्य कला का सर्वोकृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर महामारु शैली में निर्मित है और इसका शिखर ’नागर शैली’ में बनाया गया है।
कैवाय माता
- यह दहिया राजवंश की कुलदेवी है।
- कैवाय माता का मंदिर किणसरिया गाँव (परबतसर, डीडवाना-कुचामन) में है।
- इस मंदिर का निर्माण राजा चच्च द्वारा करवाया गया।
आशापुरा माता
- यह नाडोल व जालौर के चौहानों की और बिस्सा ब्राह्मणों की कुलदेवी है।
- आशापुरा माता का मंदिर नाडोल (पाली), मोदरा (जालौर), पोकरण (जैसलमेर) व भड़ौच (गुजरात) में है।
- आशापुरा माता के आशीर्वाद से शाकंभरी के शासक वाक्यपतिरात प्रथम के पुत्र लक्ष्मण ने नाडोल पर विजय प्राप्त की थी। इन्होंने नाडोल (पाली) में देवी का मंदिर बनवाया।
- पोकरण (जैसलमेर) में आशापुरा माता बिस्सा जाति की कुलदेवी मानी जाती है। पोकरण (जैसलमेर) में स्थित इनके मंदिर में लूणभान बिस्सा द्वारा कच्छ (गुजरात) से मूर्ति लाकर स्थापित करवायी गयी।
- भड़ौच (गुजरात) में इनके मंदिर का निर्माण विग्रहराज चौहान द्वितीय द्वारा करवाया गया।
- आशापाला वृक्ष (देवी का वास) चौहान वंश का आराध्य वृक्ष है। इसी कारण चौहान न तो इसे काटते है और न ही जलाते है।
सुगाली माता
- सुगाली माता ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत की कुलदेवी है।
- सुगाली माता का मंदिर आउवा (पाली) में है।
- इनकी प्रतिमा में दस सिर व चौवन हाथ है।
- 1857 में सुगाली माता की प्रतिमा को अंग्रेजों ने खंडित कर दिया था और आबू ले गये, वहाँ से 1908 में यह राजपूताना म्यूजियम अजमेर में रखी गयी। वर्तमान में यह प्रतिमा पाली संग्रहालय में रखी है।
- यह देवी 1857 के स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्रोत रही है अतः इसे ’1857 की क्रांति की देवी’ कहलाती है।
- यहीं पर सुगाली माता का पैनोरमा भी बना है।
सुन्धा माता
- सुन्धा माता का मंदिर भीनमाल (जालौर) में है। इस मंदिर का निर्माण चाचिकदेव ने करवाया था।
- यहीं पर 2006 में राजस्थान का पहला रोप वे बना है।
- भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती का सिर सुंधा पर्वत पर आकर गिरा था। इसीलिए सुंधा माता को अघटेश्वरी भी कहा जाता है।
सच्चियाय माता
- यह ओसवालों की कुल देवी और साम्प्रदायिक सद्भावना वाली देवी है।
- इनका मंदिर औसियां (जोधपुर ग्रामीण) में है। इस मंदिर का निर्माण परमार शासक उपलदेव ने 9 वीं सदी में करवाया था।
- इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित मूर्ति कसौटी पत्थर की है, यह महिषासुर मर्दिनी देवी की प्रतिमा है। सच्चियाय महिषासुर मर्दिनी का सात्विक रूप है।
तनोट माता
- यह थार की वैष्णो देवी और रूमाल वाली देवी कहलाती है। इन्हें BSF के जवानों और सैनिकों की देवी कहा जाता है।
- तनोट माता का मंदिर तनोट (जैसलमेर) में है। इनका मंदिर ’रूमाल वाला मंदिर’ कहलाता है।
- इस मंदिर में BSF के जवान पूजा करते हैं, 1965 के भारत पाक युद्ध के समय मंदिर परिसर में गिरे गोले नहीं फटे थे। वे जिन्दा बम/गोले आज भी सुरक्षित है व देखने के लिए रखे गये है।
- 1965 में भारत-पाक युद्ध में भारत ने अपनी विजय स्मृति में मंदिर के सामने विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था।
हिंगलाज माता
- यह चारणों की आराध्य देवी और मुसलमानों की देवी है।
- इनका मुख्य मंदिर लासवेला गाँव (पाकिस्तान) में है।
- हिंगलाज माता का मंदिर लोद्रवा (जैसलमेर), नारलोई (जयपुर), बीदासर (चूरू), फतेहपुर (सीकर) आदि कई स्थानों पर है। इनमें सबसे प्रसिद्ध मंदिर लोद्रवा (जैसलमेर) में है।
- यहाँ भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती का ब्रह्मारंध्र आकर गिरा था। हिंगलाज माता की पूजा चांगला खाप के मुसलमानों की ब्रह्मचारिणी कन्या द्वारा की जाती है इसलिए यह चांगली माई कहलाती है।
- हिंगलाज माता की साळ जैसलमेर के घड़सीसर तालाब के मध्य स्थित है।
लटियाला माता
- लटियाला माता कल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवी है।
- इनके मंदिर में आगे खेजड़ी का पेड़ है इसलिए यह देवी खेजड़बेरी राय भवानी कहलाती है। इस मंदिर में अखण्ड ज्योत जलती रहती है।
- लटियाली माता के फलौदी, नया शहर (बीकानेर) में भी मंदिर है।
आवड़ माता
- आवड़ माता चारणों की आराध्य देवी है।
- इनका मंदिर जैसलमेर में तेमड़ी पर्वत व गजरूप सागर के पास बना है।
- इनका अन्य नाम तेमड़ेताई भी है। इनका प्रतीक शकुन चिड़ी/पालम चिड़ी है।
- जैसलमेर के राजचिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया/शकुन चिड़िया को दर्शाया गया है, जो जैसलमेर के राजचिह्न में स्वांग मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है।
- यह हिंगलाज माता का अवतार है।
चामुण्डा माता
- चामुण्डा माता के मंदिर मण्डोर (जोधपुर), मेहरानगढ़ (जोधपुर), अजमेर और चावण्ड (उदयपुर) में है।
- यह माता गुर्जर प्रतिहारों की आराध्य देवी और जोधपुर के राठौड़ वंश की इष्ट देवी है।
- जब इंदा शाखा के परिहार राजा उग मजी ने अपनी पौत्री का विवाह राव चूंडा से कर मंडोर दहेज में दिया था तब राव चूंडा ने मंडोर में चामुण्डा माता का मंदिर बनवाया था। बाद में राव चुंडा के पौत्र राव जोधा ने 1460 में यह मूर्ति मंडोर से मंगवाकर जोधपुर दुर्ग के चामुण्डा बुर्ज पर स्थापित करवा दी थी।
- महाराजा तख्तसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
आई जी माता
- आई जी माता को जीजी बाई भी कहते है।
- यह सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुल देवी है।
- इनका प्रमुख मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर ग्रामीण) में है।
- यह नवदुर्गा का अवतार मानी जाती है।
- इनका जन्म अंबापुर गाँव (गुजरात) में बीका जी डाबी राजपूत के घर 1415 ई. में हुआ था।
- इनकी सुन्दरता से मुग्धित होकर मांडू का बादशाह इन्हें अपनी बेगम बनाना चाहता था इसलिए जीजीबाई मालवा छोड़कर अपने पिता के साथ 1521 विक्रम संवत् में बिलाड़ा (जोधपुर ग्रामीण) आ गयी। यहाँ पर यह रामदेव जी की शिष्या बन गयी।
- इनका मंदिर नीम वृक्ष के नीचे होता है।
- इनके पुजारी दीवान और अनुयायी डोराबंध (11 नियमों की पालना) कहलाते है।
- इनके मंदिर को ’दरगाह’ तथा समाधि स्थल को ’बडेर’ कहा जाता है।
- इनकी पूजा हर महीने शुक्ल द्वितीया को होती है, इनके दीपक की ज्योति से केसर टपकती है।
- आईजी माता द्वारा बनाये गये 11 नियमों का पालन करते हुए सूत के धागे की 11 गाँठों वाली बेल हाथ पर व महिलाओं के गले में बांधते है।
- इस देवी के मंदिर में गुर्जर जाति का प्रवेश निषेध है।
नागणेची माता
- नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ों की कुल देवी है।
- मारवाड़ के राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा के पौत्र एवं आसनाथ के पुत्र राव धुहड़ के समय कन्नौज के सारस्वत ब्राह्मण लुम्ब ऋषि ने कर्नाटक से लाकर नगाणा गाँव (बालोतरा) में यह मूर्ति स्थापित करवायी थी, इसी कारण देवी का नाम नागणेची पड़ा।
- नागणेची माता का पुजारी राठौड़ होता है।
- इनकी मूर्ति लकड़ी से बनी है और 18 भुजी शस्त्रों से सुसज्जित प्रतिमा है।
- इनका थान नीम वृक्ष के नीचे होता है।
- नागणेची माता का प्रथम धाम नगाणा (बालोतरा) माना जाता है।
- राव जोधा ने नगाणा से यह मूल मूर्ति मंगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवा कर मेहरानगढ़ में भी नागणेची माता का मंदिर बनवाया।
- राव बीका ने भी जोधपुर से 18 भुजाओं वाली चाँदी की मूर्ति मंगवा कर बीकानेर में नागणेची माता का मंदिर बनवा कर स्थापना करवाई।
राणी भटियाणी माता
- राणी भटियाणी माता का मंदिर जसोल (बालोतरा) में है। इनका मंदिर ढोली जाति की आस्था का केन्द्र है।
- इनका जन्म जोगीदास गाँव (जैसलमेर) में हुआ था।
- इनका विवाह जसोल के महारावल कल्याणसिंह के साथ हुआ था।
राजस्थान की अन्य लोकदेवियाँ
लोकदेवी | मंदिर |
ऊँटाला माता | वल्लभनगर (उदयपुर) |
हिचकी माता | सनवाड़ (उदयपुर) |
चारभुजा देवी | खमनौर (हल्दीघाटी, राजसमंद) |
जावर माता | जावर खान (सलूम्बर) |
छींछ माता | बाँसवाड़ा |
आसपुरी माता | डूँगरपुर |
दिवाक माता | जोलर (प्रतापगढ़) |
डाढ़ देवी | कोटा |
कोडिया देवी | बाराँ |
बिजासन माता | इन्द्रगढ़ (बूँदी) |
रक्तदंजी माता | संथूर (बूँदी) |
छींक माता | जयपुर |
ज्वाला माता | बीकानेर |
शाकंभरी माता | सांभर (जयपुर ग्रामीण) |
नकटी माता | जयभवानीपुरा (जयपुर ग्रामीण) |
खलकाणी माता | लूणियावास (जयपुर ग्रामीण) |
धोलागढ़ माता | अलवर |
जिलाणी माता | कोटपूतली-बहरोड़ |
मनसा माता | झुंझुंनूं, चूरू |
सकराय माता | उदयपुरवाटी (नीम का थाना) |
मरकंडी माता | निमाज (ब्यावर) |
ब्राह्मणी माता | नागौर |
भंवाल माता | नागौर |
सरकी माता | डीडवाना-कुचामन |
धनोप माता | शाहपुरा |
खीमज माता | भीनमाल (जालौर) |
अर्बूदा देवी | आबू पर्वत (सिरोही) |
अम्बा माता | आबू रोड़ (सिरोही) |
खीमल माता | बसंतगढ़ (सिरोही) |
पीपला माता | ओसियां (जोधपुर ग्रामीण) |
विरात्रा माता | चौहटन (बाड़मेर) |
खोड़ियार माता | जैसलमेर |
पिपला माता | उनवास (हल्दीघाटी, राजसमंद) |
रक्तदंजी माता | संथूर (बूँदी) |
निष्कर्ष :
आज के आर्टिकल में हमने राजस्थान की कला संस्कृति टॉपिक के अंतर्गत राजस्थान की लोकदेवियाँ(Rajasthan ki Lok Deviyan) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। हम आशा करतें है कि आप हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से संतुष्ट होंगे ….धन्यवाद